ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत पाकिस्तान के हर हमले का मुंहतोड़ जवाब दे रहा है. बीती रात भी पाकिस्तान ने बॉर्डर से सटे सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की थी, जिसके जवाब में भारतीय सेना ने तगड़ा प्रहार किया है. लेकिन पाकिस्तान की इन नापाक हरकतों से पीछे पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर सबसे बड़ा साजिशकर्ता है. माना जाता है कि उसी के उकसावे के बाद पहलगाम में बेकसूर पर्यटकों को निशाना बनाकर आतंकी हमला किया गया और उसके बाद ही भारत-पाक के बीच जंग के हालात बन गए हैं.
पुलवामा अटैक की रची थी साजिश
आसिम मुनीर न सिर्फ उपमहाद्वीप में छाए तूफान की वजह है, बल्कि वो खुद भी तूफान है. यह महज संयोग नहीं है कि वो कुख्यात पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस या आईएसआई का प्रमुख था, जब इसने 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा आतंकी हमले की साजिश रची थी, जिसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के 40 जवान शहीद हुए थे. इसके 6 साल बाद मुनीर, जो अब असल में पाकिस्तान का सर्वेसर्वा है, एक बार फिर भारत के निशाने पर है, क्योंकि वह पहलगाम आतंकी हमले का कथित मास्टरमाइंड है. मोदी सरकार दो दशकों में घाटी में सबसे भीषण नागरिक नरसंहार का सैन्य जवाब दे रही है, इसलिए उसे आसिम मुनीर की चालाकी को कम नहीं आंकना चाहिए.
पाकिस्तान में जिन लोगों ने अतीत में ऐसा किया है, उन्हें बाद में सबक सीखना पड़ा है. उनमें से एक इमरान खान थे, जिन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहते हुए 2018 में मुनीर की ISIS चीफ के रूप में नियुक्ति को मंजूरी दी और सिर्फ नौ महीने बाद उसे पद से बर्खास्त भी कर दिया था. क्योंकि मुनीर ने ही इमरान की पत्नी बुशरा बीबी के भ्रष्टाचार की पोल खोली थी. मुनीर ने सबसे कम समय तक सेवा ISI प्रमुख होने के अपमान के लिए इमरान को कभी माफ नहीं किया और बदला लेने लिए समय का इंतजार किया.
परमाणु देशों के बीच बड़ा टकराव
यह मौका तब आया जब अप्रैल 2022 में इमरान को सेना की तरफ से रचे गए तख्तापलट में पद से हटा दिया गया और मुनीर को इमरान के विरोधी सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थक पाकर उसी साल नवंबर में सेना प्रमुख बन गया. महीनों बाद मुनीर ने इमरान को भ्रष्टाचार के कई आरोपों में जेल में डाल दिया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री को इस साल की शुरुआत में 14 साल जेल की सजा सुनाई गई है.
आसिम मुनीर की हरकतें, दिमागी साजिश, ताकत और कमजोरियों का पता लगाना भारत की उस रणनीति का केंद्र बन गया है, जिसके तहत पहलगाम में पाकिस्तान की ओर से किए गए नरसंहार के लिए उसे माकूल जवाब दिया जा रहा है. मुनीर एक मजबूत, पांच लाख सैनिकों वाली पाकिस्तानी सेना का अगुवा है- जो कम से कम कागजों पर तो दुनिया की छठी सबसे बड़ी सेना है. इसके पास परमाणु हथियार भी हैं और नियंत्रण रेखा पर भारतीय सैनिकों के बराबर है. नाम न बताने पर एक एक्सपर्ट ने कहा, 'यह इजरायल बनाम हमास या अजरबैजान बनाम आर्मेनिया जैसा कोई विषम युद्ध नहीं है. यह दो सबसे पेशेवर सेनाओं के बीच की लड़ाई है, जो बराबरी की हैं और जिनके पास परमाणु ताकत है. हम जो भी करेंगे, हमें उससे जवाबी कार्रवाई की उम्मीद करनी चाहिए. संघर्ष की बढ़ती सीढ़ी को नियंत्रित करना आसान नहीं होगा. मुनीर की हालिया कार्रवाइयों को देखते हुए हमें अप्रत्याशित और आश्चर्य के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें उसका कुछ शुरू करना और उसके लिए हमें ही दोषी ठहराना भी शामिल है.'
भारत से दुश्मनी मोल ले रहा मुनीर
मुनीर ऐसा पाकिस्तानी जनरल है जो आईएसआई के प्रमुख होने के साथ-साथ सैन्य खुफिया महानिदेशक भी रहा है, इसलिए उससे उम्मीद की जाती है कि उसने अपनी रणनीति के बारे में अच्छी तरह से सोचा होगा. सिंधु जल संधि (IWT) को सस्पेंड रखने के भारत के फैसले के जवाब में पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते को तत्काल स्थगित कर दिया. युद्ध के खेल से परिचित एक अन्य रणनीतिकार बताते हैं, 'मुनीर ने पहले से ही सभी विकल्पों पर विचार कर लिया होगा और वह ज्यादा सावधानी से आगे बढ़ रहा है. हमें सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि उसके पास खुफिया सिस्टम को चलाने का भी अनुभव है. यह शतरंज के खेल की तरह है जिसमें हमें अपनी खुद की इमरजेंसी प्लानिंग और चाल के साथ उनसे 10 कदम आगे सोचने की जरूरत है. इसलिए हमें तब तक उनके कदमों पर दोबारा विचार करते रहना होगा जब तक कि हमारे पास कम से कम कुछ संभावित जवाब न आ जाएं. विशेषज्ञों को उनके बयानों के आधार पर एक साइकोलॉजिकल प्रोफाइलिंग करने की भी जरूरत है.'
मुनीर के 17 महीने के कार्यकाल में ऐसे कई संकेत हैं जो यह दिखाते हैं कि वह जानबूझ कर भारत से दुश्मनी मोल ले सकता है. शुरुआत में इमरान की गिरफ़्तारी पर आंतरिक असंतोष के कारण वो पीछे हट गए थे. लेकिन मुनीर ने सेना पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली, यहां तक कि अपने विरोधियों को हटाकर उनकी जगह वफ़ादारों को नियुक्त कर दिया. तब से वह पाकिस्तान में सिर्फ़ सेना प्रमुख से ज्यादा की हैसियत रखते हैं और अब राजनीतिक सत्ता के सभी पहलुओं को कंट्रोल करते हैं. मुनीर ने संसद में एक संशोधन पारित करवाकर इमरान के समर्थकों को सुप्रीम कोर्ट से भी 'साफ़' कर दिया है, जो जजों को सस्पेंड करने की इजाजत देता है. एक और बड़ा कदम उठाते हुए, उन्होंने संसद में संशोधन पारित करवाया, जिसने उनके तीन साल के कार्यकाल को बढ़ाकर पांच साल कर दिया. इससे यह साफ हो गया है कि वह 2027 तक ड्राइवर की सीट पर रहेंगे और उनके कार्यकाल को आगे बढ़ाने के लिए कोई आयु सीमा नहीं है.
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अमेरिका में स्थित दक्षिण एशियाई विश्लेषक माइकल कुगेलमैन कहते हैं, 'मुनीर ने आर्मी चीफ बनने के बाद जिस तरह हर तरफ से संकट का सामना किया, वह काफी कुछ बताता है. पाकिस्तान में गंभीर राजनीतिक अस्थिरता थी, अर्थव्यवस्था पतन के कगार पर थी, आतंकवाद फिर से बढ़ रहा था और सेना में एक साफ आंतरिक असंतोष था. उन्होंने दूसरों की तुलना में उन समस्याओं से निजात पाई और चीजों को कंट्रोल में रखा है. उनकी अपनी विफलताएं हैं. जैसे, बलूच विद्रोहियों की ओर से हाल ही में जाफर एक्सप्रेस का अपहरण, जिसने उनकी और सेना की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है.
पाकिस्तान की सेना ने हमेशा देश को चलाने में बड़ी भूमिका निभाई है. अपने अस्तित्व के 77 साल में देश तीन अलग-अलग चरणों में 33 वर्षों तक मार्शल लॉ लग चुका है. हालांकि, मुनीर हाल के दिनों में नागरिक व्यवस्था को गिराए बिना सबसे शक्तिशाली सेना प्रमुखों में से एक बनकर उभरे हैं. वह जनरल जिया-उल-हक के बाद इस्लामवादी राष्ट्रवाद का आह्वान करने वाले और इससे पहचाने जाने वाले पहले सेना प्रमुख हैं. वह हाफिज-ए-कुरान हैं, मतलब ऐसा व्यक्ति जिसने पवित्र पुस्तक को याद कर रखा है, जब वह सऊदी अरब में सेना के अटैच के रूप में तैनात थे, तो उन्होंने परीक्षा पास की थी.
दूरदर्शिता की कमी और पुरानी सोच
मुनीर ने सेना में कमीशन जीतने से पहले गैरीसन शहर के एक मदरसे में पढ़ाई की थी, लेकिन उन्हें पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी के बजाय ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (ओटीएस) के ज़रिए सेना में कमीशन मिला. लेकिन इससे सेना के शीर्ष पदों पर उनकी तेज़ी से बढ़ती हुई ताकत नहीं रुकी. भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के पूर्व विशेष सचिव और पाकिस्तान के विशेषज्ञ राणा बनर्जी कहते हैं, 'मुनीर का पहला नाम, आसिम, का मतलब रक्षक है. सेना प्रमुख धार्मिक भक्ति और मकसद की गहरी भावना से प्रेरित हैं. वह विशेष रूप से अपने प्रतिद्वंद्वियों को सजा दिलाने में सावधानी बरतते हैं, लेकिन वह दूरदर्शी नहीं हैं और उनकी सोच घिसी-पिटी, यहां तक कि सख्त भी लगती है. हाल ही में, उन्होंने जानबूझकर भारत विरोधी अपमानजनक लहज़ा अपनाया है.'
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यह सब उनके गुरु और पूर्व जनरल कमर जावेद बाजवा के बिल्कुल उलट है, जो 2016 से 2022 के बीच सेना प्रमुख थे. जब इमरान खान प्रधानमंत्री थे और सार्वजनिक नीति पर सेना के प्रभुत्व का दावा करते थे, तब बाजवा पाकिस्तानी राजनीति में परदे के पीछे से एक शक्तिशाली खिलाड़ी थे. उनके कार्यकाल के दौरान ही पुलवामा हमला हुआ था और भारत ने पाकिस्तानी के अंदर घुसकर आतंकी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक करके जवाब दिया था. 1971 के युद्ध के बाद भारत की ओर से किया गया पहला ऐसा हवाई हमला, यह एक ऐसा कदम था जिसने डिटरेन्स की मिसाल कायम की, जिसने पाकिस्तान को संकेत दिया कि इस तरह के सीमा पार आतंकी हमलों का जवाब जरूर दिया जाएगा.
ईरान से रिश्ते बिगाड़े, तालिबान से टकराव
इसके बाद बाजवा ने फरवरी 2021 में नियंत्रण रेखा पर सीजफायर समझौता किया, जो मुनीर की ओर से पहलगाम नरसंहार की साजिश रचने और इस खत्म करने से पहले चार साल तक कायम रहा. जैसा कि पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया बताते हैं, 'बाजवा एक अलग विचारधारा के थे क्योंकि उनका मानना था कि सेना द्वारा बनाए गए पूरे जिहादी कॉम्प्लेक्स ने पाकिस्तान की अच्छी सेवा करना बंद कर दिया था और वे अपना ध्यान आर्थिक विकास पर केंद्रित करना चाहते थे. वे बदलाव चाहते थे, लेकिन वे धीरे-धीरे बदलाव करने वाले थे. इस बीच, उनके और इमरान के बीच खटास आ गई और वे अपना धैर्य खो बैठे.'
बाजवा की नीति को दरकिनार करते हुए मुनीर की पाकिस्तान के बारे में सोच एक 'कठोर राज्य' की है, जो आंतरिक और बाहरी दोनों तरह के खतरों के खिलाफ मजबूत सैन्य कार्रवाई के लिए हमेशा तैयार है. बनर्जी कहते हैं कि आंतरिक रूप से मुनीर ने सेना और राजनीतिक स्पेक्ट्रम में असहमति को बेरहमी से कुचल दिया है. बाहरी तौर पर उन्होंने एक सख्त, सीधा दृष्टिकोण अपनाया, खासकर अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के प्रति, जब उसने पाकिस्तान में इस्लामी अमीरात के लिए जोर देने वाले विद्रोही समूह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को शरण देना और फंडिंग करना जारी रखा. 2023 के अंत में मुनीर ने पाकिस्तान में 150,000 से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को बाहर कर दिया, जिससे वह अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान के साथ सीधे टकराव में आ गया.
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ईरान के साथ संबंधों में गुस्ताखी करते हुए मुनीर ने पाकिस्तान से संचालित ईरानी प्रतिरोध समूह पर तेहरान के ड्रोन हमले के बाद ईरानी इलाके में मिसाइल दागने में संकोच नहीं किया. मुनीर ने आजाद बलूचिस्तान की मांग कर रहे बलूच विद्रोही समूहों पर भी कड़ी कार्रवाई की है. यह अलग बात है कि उन्होंने फिर से संगठित होकर हाल ही में प्रतिशोध के साथ जवाबी हमला किया है, जिससे पाकिस्तानी सेना की किसी को भी बख्शने की रणनीति कमजोर पड़ गई है. मुनीर ने बार-बार भारत पर बलूच और टीटीपी विद्रोहियों को उकसाने या समर्थन देने का आरोप लगाया है. पाकिस्तान में कई विशेषज्ञ इसे पहलगाम हमले के लिए तर्क के रूप में पेश करते हैं. भारत के लिए ये साफ संकेत है कि मुनीर एक बेरहम दुश्मन है, जो तब भी जवाबी कार्रवाई कर सकता है, जब उसकी हर चाल नाकाम हो जाए.
सेना को बना दिया जिहादी
भारत के लिए चिंता की वजह और भी हैं. मुनीर के सेना प्रमुख बनने के बाद से ही वे अपने धार्मिक राष्ट्रवाद के ब्रांड को लेकर मुखर हो गए हैं. उन्होंने सेना के रोल को न सिर्फ पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के रक्षक के रूप में बल्कि उसकी वैचारिक सीमाओं के संरक्षक के रूप में भी नई तरह से परिभाषित किया है. अगस्त 2023 में पेशावर में एक कबायली जिरगा (परिषद) को संबोधित करते हुए मुनीर ने ऐलान किया थी, 'दुनिया की कोई भी ताकत पाकिस्तान को नुकसान नहीं पहुंचा सकती. हम अल्लाह की राह पर जिहाद (पवित्र युद्ध) कर रहे हैं और सफलता हमारी ही होगी. पाकिस्तानी सेना का मकसद और सिद्धांत शहीद या गाजी (जिहाद में भाग लेने वाला) बनना है. उनकी इस घोषणा ने उन्हें 'जिहादी जनरल' का खिताब दिलाया.
भारतीय विशेषज्ञों को जिस बात ने डरा दिया, वह पहलगाम में हुई हिंसा से छह दिन पहले 16 अप्रैल को ओवरसीज पाकिस्तानियों के सम्मेलन में मुनीर का बयान था, जहां उन्होंने टू-नेशन थ्योरी को दोहराया, लेकिन इस दौरान मुनीर ने 'हिंदुओं और मुसलमानों के बीच साफ अंतर' को ज़िया-उल-हक़ के भाषणों से भी ज्यादा उग्र तरीके से पेश किया. पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त टीसीए राघवन बताते हैं, 'भारत को लेकर मुनीर की वैचारिक स्थिति का मानक टू नेशन थ्योरी बनी हुई है और उनका मानना है कि पाकिस्तानी सेना ही देश को भारत के कब्जे से बचाए हुए है. उन्हें लगता है कि कश्मीर पाकिस्तान के निर्माण का अधूरा एजेंडा है और पाकिस्तान बहुत अन्याय का शिकार है और इसे ठीक करना पाकिस्तानी सेना की जिम्मेदारी है.'
क्यों करवाया पहलगाम हमला?
विशेषज्ञों का मानना है कि मुनीर की ओर से पहलगाम हमलों को हरी झंडी देने के कई कारण हैं. इनमें से एक कारण घरेलू उथल-पुथल भी है, जिसमें आंतरिक विभाजन और विद्रोह को संभालने में फेल होना शामिल है, जिसने सेना की छवि को नुकसान पहुंचाया है. इस हीट को महसूस करते हुए, मुनीर ने लोगों को अपने पीछे एकजुट करने के लिए भारत पर हमले का इस्तेमाल किया.
पाकिस्तानी जनरल शायद इस कोशिश में पहले ही सफल हो चुके हैं, खास तौर पर भारत की ओर से सिंधु जल संधि को सस्पेंड करने के ऐलान के बाद, एक ऐसा कदम जिससे पंजाब और सिंध जैसे सबसे ज्यादा आबादी वाले और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली प्रांतों में पानी की सप्लाई प्रभावित होने का खतरा है. बिसारिया कहते हैं, 'मुनीर अपनी ताकत को मजबूत करना चाहते हैं और सर्वोच्च नेता के रूप में उभरना चाहते हैं.' उदारवादी और शहरी लोगों के उनके खिलाफ होने के कारण, वह दक्षिणपंथियों के बड़े हिस्से को जीतना चाहते हैं.
आतंकियों को बना रहा ताकतवर
रणनीतिकारों ने मुनीर के अब हमला करने के लिए एक और कारण बताया. यह धारणा कि भारत अब कश्मीर को पाकिस्तान से दूर ले जा रहा है. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने, निर्वाचित सरकार के गठन और घाटी में पर्यटकों की वापसी के साथ, यह डर था कि कश्मीर की स्थिति नई दिल्ली के पक्ष में हो जाएगी. इसलिए घाटी में शांति और स्थिरता के भ्रम को खत्म करने के लिए नागरिकों पर मुंबई 2008 जैसा हमला किया गया. विशेषज्ञ पहलगाम हमले को ISI की ओर से दो ऑपरेशन के रूप में शुरू की गई एक ठोस योजना के हिस्से के रूप में भी देखते हैं. कश्मीर और पंजाब को अस्थिर करने की कोशश की जा रही है. कश्मीर में आतंकवादी अच्छी तरह से ट्रेंड हैं और हाईटेत हथियारों से लैस हैं. वे कम्युनिकेशन तकनीकी का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, शायद चीनी मूल की, जिसे इंटरसेप्ट और डिक्रिप्ट करना शायद मुश्किल है. एक-दूसरे के साथ बेहतर कमांड, कंट्रोल और कॉर्डिनेशन के साथ, उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जम्मू क्षेत्र पर हमला किया और उसके बाद घाटी को निशाना बनाया. पंजाब में आतंकवादी भारी मात्रा में नशीले पदार्थ भेज रहे हैं और राज्य में अराजकता फैलाने के लिए गैंगवार को भी बढ़ावा दे रहे हैं.
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मुनीर ने अपने हालिया उकसावे में शायद हद पार कर दी है. पहलगाम में पर्यटकों को निशाना बनाने से कश्मीर में पाकिस्तान की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा है, क्योंकि पहली बार घाटी के लोग एकजुट होकर विरोध में खड़े हुए हैं और हमलों की निंदा की है. इसका सीधा असर पर्यटन पर पड़ा है, जो पिछले दो सालों से फल-फूल रहा था, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हुई है. पाकिस्तान के विशेषज्ञ मुनीर की हरकतों से निराश हैं, उनका कहना है कि भारत के साथ सैन्य संघर्ष आखिरी चीज है जिसे देश बर्दाश्त नहीं कर सकता है, खासकर तब जब वह आर्थिक संकट से अभी तक उबर नहीं पाया है. उनका मानना है कि मुनीर के ISI के अतीत ने उसे लापरवाह बना दिया है, उन्होंने बताया कि शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो जासूसी एजेंसी का प्रमुख बन जाए. जैसा कि एक विशेषज्ञ ने कहा, 'जब आग लगाने की बात आती है, तो मुनीर बहुत अच्छा हो सकता है. लेकिन पाकिस्तान की सेना ने ऐतिहासिक रूप से यह समझ लिया है कि अगर आप माचिस वाले किसी व्यक्ति को कमान सौंपते हैं, तो आपको आगजनी से बचने के लिए उस पर नज़र रखने की ज़रूरत है.'
पाकिस्तान में मुनीर को रोकने में कोई सक्षम नहीं है, इसलिए मोदी सरकार पर इस गलत काम करने वाले जनरल को सजा देने की जिम्मेदारी है. जैसा कि बिसारिया कहते हैं, 'पाकिस्तान जानता है कि उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी और उसे भारत के साथ जंग के लिए तैयार रहना चाहिए. भविष्य में इस तरह की हरकतों को रोकने के लिए यही एकमात्र उपाय है.'
(नोट: यह लेख मूल रूप से इंडिया टुडे मैगजीन के 12 मई 2025 अंक में प्रकाशित हुआ था)