टीम इंडिया की शानदार जीत के साथ ही टी20 क्रिकेट से दो दिग्गजों, विराट और रोहित ने संन्यास का ऐलान भी कर दिया. किरदारों के तौर पर, वे एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. क्रिकेट में हमेशा से एक खूबसूरत कवर ड्राइव के साथ एक एक पुल शॉट भी होता है. यही वजह है कि विराट कोहली और रोहित शर्मा पिछले डेढ़ दशक से एक-दूसरे के पूरक रहे हैं. चाहे निराशा की घड़ी हो, या जीत का उत्साह या फिर अब टी20 से संन्यास का ऐलान.
इसके साथ ही दोनों क्रिकेटर विरोधाभास की दुनिया को जीवंत करते हैं. कोहली कुछ पाने की की चाह में अपनी आक्रामता दिखाते हैं तो रोहित अपने हल्के-फुल्के अंदाज में विषम परिस्थितियों में भी शांत रहकर अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं. टी20 विश्व कप जीत के तुरंत बाद उनकी प्रतिक्रियाओं ने हजारों तस्वीरों को जीवंत बना दिया.
रोहित पहले अपने घुटनों पर बैठे और फिर जमीन पर लेट गए. पूरे समय उनकी आंखों में आंसू थे. दूसरी ओर कोहली चुपचाप ड्रेसिंग रूम की ओर चले गए जो अपनी भावनाओं को छिपाने की पूरी कोशिश कर रहे थे. वह उस अनमोल क्षण का आनंद लेने की कोशिश कर रहे थे, जो बहुत लंबे समय बाद हासिल हुआ था.
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दोनों को एकसूत्र में बांधती हैं ये बात
हालांकि, एक बात दोनों में समान रही है, जो उन्हें एकसूत्र में बांधती है, वह है, एक-दूसरे की प्रतिभा और उपलब्धियों के प्रति सच्चा सम्मान. यही एक कारण है कि वे एक-दूसरे का सम्मान करते हैं. रोहित अच्छी तरह जानते थे कि कोहली ने परिणाम की परवाह किए बिना इस प्रारूप से संन्यास लेने का फैसला किया है. रोहित के करीब 16 साल के साथी ने मैच के बाद प्रेजेंटेशन में अपना फैसला सुनाया, तो कप्तान ने इस बीच बिना एक भी शब्द बोले बिना उनके फैसले को तरजीह दी.
उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने अनोखे अंदाज में बातचीत की और हर सवाल का जवाब दिया. ऐसा लग रहा था कि कोहली ने यह बहुत पहले ही तय कर लिया था. कोहली ने कहा, "अब अगली पीढ़ी के कमान संभालने का समय आ गया है. हम हारते या जीतते, मैं ये ऐलान करने ही वाला था." किसी बड़ी पारी से पहले की तरह ही, दिग्गज ने अपना होमवर्क किया था.
80 के दशक में गावस्कर और कपिल का होता था जिक्र
जब रोहित से उनके संन्यास के बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब हमेशा की तरह सीधा और उस समय के हिसाब से था. उन्होंने कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं टी20 से संन्यास ले लूंगा. लेकिन स्थिति ऐसी है, मुझे लगा कि यह मेरे लिए एकदम सही स्थिति है. कप जीतने के बाद अलविदा कहने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. उनका सहज स्वभाव कई बार सामने आया. अगर एक ही युग में दो बेहतरीन खिलाड़ी काम कर रहे हों, तो टकराव होना तय है.
एक पुरानी कहावत है "एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं". भारतीय क्रिकेट का स्तर इतना ऊंचा है कि दो तलवारें अपने-अपने फायदे के लिए एक साथ रहना सीख जाती हैं. सुनील गावस्कर और कपिल देव 80 के दशक के मध्य में इसमें फंस गए थे. यह तब की बातें है, जब सोशल मीडिया का दौर नहीं था.
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अगर आप 'रन इन रुइन्स' और 'बाई गॉड्स डिक्री' जैसी किताबें पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि 82 और 85 के बीच कप्तानी दोनों के बीच म्यूजिकल चेयर का खेल बन गई थी, तब चीजें बिल्कुल भी सहज नहीं थीं.
रोहित और कोहली का एक-दूसरे के प्रति सम्मान
जिस युग में रोहित और कोहली ने काम किया, वह कम से कम कहने के लिए बहुत ही क्रूर है. पिछले कुछ वर्षों में, सोशल मीडिया ने तेजी से पांव पसारे हैं जहां अक्सर कल्पना को तथ्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. भारतीय क्रिकेट के दो मेगास्टार इस हो-हल्ले में अपनी समझदारी, संतुलन और गरिमा बनाए रखने में सक्षम रहे. दोनों जानते थे कि यह सतही है और रहेगा. 2019 विश्व कप के सेमीफाइनल में बाहर होने के बाद और जब कोहली ने टी20 कप्तानी छोड़ने का फैसला किया, तब भी उनके वर्किंग रिलेशनशिप में दरार आने की खबर सामने आई. इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि तब बीसीसीआई ने रोहित को दोनों प्रारूपों के लिए व्हाइट-बॉल कप्तान के रूप में पदोन्नत करने का फैसला किया था. कोहली के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे, जो बताते हैं कि उनके मन में रोहित के प्रति कितना सम्मान है.
कोहली ने रोहित को लेकर कही थी ये बात
कुछ साल पहले एक पॉडकास्ट में कोहली ने रोहित का जिक्र करते हुए कहा था, "जब उनका पहली बार जिक्र हुआ तो सब बोलते थे कि एक खिलाड़ी आया है रोहित शर्मा. मैं सोचता था युवा खिलाड़ी तो हम भी हैं, ऐसा कौन सा खिलाड़ी है भाई कि कोई हमारी बात नहीं करता. फिर टी20 विश्व कप में दक्षिण अफ्रीका के साथ हुए मैच में उसकी पारी देखी और मैं अपने सोफे पर लेट गया. मैंने खुद से कहा कि आज के बाद चुप रहना."
जबकि रोहित कहते हैं: "देखिए, विराट बिना किसी संदेह के चैंपियन खिलाड़ी रहे हैं. और हम सभी जानते हैं कि उन्होंने हमारे लिए क्या किया है", तो यह बातें अत्यंत दृढ़ विश्वास से आती हैं. कोहली ने अपनी ओर से कहा: "मैंने 6 टी20 विश्व कप खेले हैं और रोहित ने 9 खेले हैं. वह इसके हकदार हैं."
दोनों के अलग-अलग संघर्ष रहे
दोनों के संघर्ष अलग-अलग तरह के थे. कोहली को उस भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ना पड़ा और अलग माहौल में अपनी योग्यता साबित करनी पड़ी, जब उनके दिवंगत वकील पिता ने अंडर-15 चयन के लिए रिश्वत देने से इनकार कर दिया था. दूसरी ओर, रोहित थे, जिनके चाचा ने बोरीवली में स्वामी विवेकानंद स्कूल के अधिकारियों से कहा था कि 90 के दशक के अंत में 200 रुपये की मासिक ट्यूशन फीस का भुगतान करना मुश्किल होगा. उन्हें अंततः खेल छात्रवृत्ति की पेशकश की गई.
जिस तरह 25 जून, 1983 को लॉर्ड्स की बालकनी में कपिल के हाथों को ऊपर उठाते हुए गावस्कर ने ट्रॉफी उठाई थी वह पुराने प्रशंसकों के लिए एक यादगार पल है. उसी तरह 'रो-को' (रोहित- कोहली) की झप्पी लोगों की आंखों की कोर में जमा हुए आंसू बहा देगी. वे भारतीय क्रिकेट के 'सलीम-जावेद' हैं, जिन्होंने एक के बाद एक हिट महाकाव्य लिखे हैं. वे हमेशा पुरानी यादों में रहेंगे.